October 16, 2024

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भारत में किसान आंदोलन का अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां बनना मोदी सरकार के लिए कितना सिर दर्द ?

–BY Firoz Iliyasi

दिल्ली के गाजीपुर और सिंघु बॉर्डर पर में चल रहे किसान आंदोलन पर अब दुनिया की नजर भी पड़ने लगी है. अमेरिकी पॉप स्टार रिहाना ने ट्वीट कर किसानों का समर्थन किया है. उनके साथ ही स्वीडन की जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग, अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की भांजी मीना हैरिस, अमेरिकी अभिनेत्री अमांडा केरनी, गायक जे सीन, डॉ जियस, पूर्व वयस्क फिल्मों के कलाकार मिया खलीफा सहित कई मशहूर हस्तियों ने भारत में किसानों के विरोध प्रदर्शन का समर्थन किया है.

इसके बाद भारत के किसान आंदोलन की चर्चाएं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगातार शुरू हो गई हैं. दो महीने से भी ज्यादा से चल रहे इस आंदोलन में भारत की मोदी सरकार और किसान आमने सामने हैं. सरकार तीन कृषि बिल को एक साल के लिए टालने के लिए तैयार है तो किसान कृषि बिलों को रद्द करने से कम पर तैयार नहीं हैं. सरकार ने किसान आंदोलन को कमजोर करने के लिए कई तरह की पाबंदियां भी लगाई हैं. जैसे प्रदर्शन स्थल में इंटरनेट बंद करना, धरना स्थल के चारो तरफ बैरिकेटिंग, तार और किलों के जरिय रास्ता बंद करना शामिल हैं. ऐसे में भारत में किसानों का आंदोलन अंतरराष्ट्रीय मीडिया के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन गया है. दुनिया के मेन स्ट्रीम मीडिया अब दिल्ली में किसान आंदोलन को कवरेज देने लगे हैं. यही नहीं भारत में बिहार समेत कई राज्यों में मोदी गठबंधन की सरकारों पर भी सवाल खड़ा किया गया है.

अमेरिका के सबसे बड़े अखबार ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ भारत में चल रहे किसान आंदोलन को प्रमुखता से कवर कर रही है. इसका अंदाजा बुधवार 3 फरवरी, 2021 को ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ (The New York Times) में छपे लेख से लगाया जा सकता है, जिसमें किसान आंदोलन को लेकर मोदी सरकार पर तल्ख टिप्पणी की गई है. लेख का शीर्षक ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में ‘Modi’s Response to Farmer Protests in India Stirs Fears of a Pattern’ दिया गया है. इस लेख में भारत में बढ़ रहे असंतोष का जिक्र किया गया है. साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को किसान आंदोलन से निपटने में जद्दोजहद करते हुए बताया गया है. किसान आंदोलन का समर्थन कर रहे पत्रकारों पर नकेल कसने से लेकर किसानों के आंदोलन स्थल पर इंटरनेट बंद करने पर कड़ी टिप्पणी की गई है.

किसान आंदोलन को लेकर भारत के कई राज्यों में मोदी गठबंधन में चल रही सरकारों की भी आलोचना की गई है. बिहार की एनडीए सरकार का भी जिक्र किया गया है. इस लेख में ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ (The New York Times) ने बिहार के बारे में लिखा है कि ‘In the state of Bihar, which is led by a Modi ally, the police said applicants would be barred from government jobs if they were found to have considered “in any law and order situation, protests, road jams etc.”

यानि, मोदी के नेतृत्व वाले बिहार राज्य में, पुलिस ने कहा कि राज्य में सरकारी नौकरी के लिए ऐसे आवेदकों को नौकरियों से रोक दिया जाएगा जो “किसी भी कानून-व्यवस्था की स्थिति, विरोध प्रदर्शन, सड़क जाम आदि” जैसी गतिविधियों में शामिल होंगे.

 

अंतराष्ट्रीय मीडिया में इस तरह की बिहार को लेकर बाते सामने आई हैं तो इस पर सियासत भी होना लाजिमी है. बीजेपी के साथ होने का लोजपा हमेशा दावा करती है. लेकिन पिछले साल हुए बिहार चुनाव से पहले ही उसने एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ा. अब बीजेपी के साथ मिलकर कर जेडीयू की चल रही सरकार पर हमला करने का अवसर एलजेपी को मिला तो वो कैसे पीछे रह सकती है. लोजपा के प्रदेश प्रवक्ता अशरफ ने ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ (The New York Times) में छपे लेख का हवाला देते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमला करते हुए कहा कि ‘अमेरिका के अखबार ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ (The New York Times) में महात्मा गांधी के विचारों का गला घोट कर हिटलर और बेनिटो मुसोलिनी के विचारों से प्रेरित बिहार प्रदेश प्रशासन के बेहद कायरना फरमान की चर्चा की है। नीतीश सरकार के खिलाफ उठ रही आवाज को दबाने के लिए जारी बेतुके फरमान की चर्चा विश्व भर में हो रही है।’

बात सिर्फ बिहार की नहीं ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ (The New York Times) ने उत्तराखंड में मोदी की पार्टी की सरकार का जिक्र करते हुए लिखा है कि
‘In Uttarakhand, a state run by Mr. Modi’s party, the police chief said that his forces would be watching social media posts for “anti-national” posts and that passport applications could be denied to anyone who had posted such content.’

यानि, मोदी की पार्टी द्वारा संचालित उत्तराखंड में पुलिस प्रमुख ने कहा कि उनकी टीम “राष्ट्र-विरोधी” पोस्ट्स के लिए सोशल मीडिया पर नजर रख रही है. और इस तरह के कंटेंट को पोस्ट करने वाले लोगों के पासपोर्ट आवेदन से वंचित किया जा सकता है।

‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ (The New York Times) में मुजीब माशल और समीर यासीर ने ये रिपोर्ट की है. इस रिपोर्ट के छपने के बाद सियासी बयानबाजी हो रही है साथ ही अंतराराष्ट्रीय स्तर पर भारत में किसान आंदोलन को लेकर कई तरह की प्रतिक्रिया आनी शुरू हो गई हैं. अभी हाल में ही किसानों के प्रदर्शन का समर्थन करने वाली अमेरिकी पॉप गायिका रिहाना ने ट्विट कर भारतीय किसानों का समर्थन किया. इसके बाद रिहाना के समर्थन में कई प्रमुख हस्तियां एवं कार्यकर्ता भी आ गए, जिससे इस आंदोलन ने अंतरराष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया है.

अमेरिकी पॉप गायिका रिहाना और स्वीडन की जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग सहित कई मशहूर हस्तियों के भारत में किसानों के प्रदर्शन के बारे में की गई टिप्पणी के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया सामने आई. मंत्रालय ने कहा कि प्रदर्शन के बारे में टिप्पणी करने से पहले तथ्यों की जांच कर लेनी चाहिए. इसके बाद भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने भी ट्विट कर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कोई दुष्प्रचार भारत की एकता को डिगा नहीं सकता.

इधर दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रहे भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) नेता राकेश टिकैत अपने समर्थकों के साथ मोदी सरकार पर लगातार तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का दबाव बनाए हुए हैं. राकेश टिकैत ने सीधे तौर पर नहीं लेकिन इशारों-इशारों में नरेंद्र मोदी सरकार को चेतावनी दी है कि अगर विवादित तीनों कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन जारी रहता है, तो सरकार सत्ता खो सकती है. वहीं, टिकैत ने साफ कर दिया है कि कृषि कानून वापस नहीं लिए गए तो आंदोलन अक्टूबर तक तो जारी ही रहेगा. इससे आगे भी जारी रह सकता है.

 

साफ है जिस तरह से भारत में किसान आंदोलन अब अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां बटोरने लगा है. उससे मोदी सरकार को कृषि कानून को लेकर अपने फैसले पर टिके रहना मुश्किल होगा. साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को लेकर जिस तरह से चर्चाएं हो रही हैं, उससे मोदी सरकार दबाव में जरूर आ सकती है. जाहिर है ऐसे हालात में अब मोदी सरकार जल्द से जल्द किसानों के साथ ये विवाद खत्म करना चाहेगी. लेकिन देखना ये होगा कि ये विवाद कब और किस तरह से खत्म होता है.