पाकुड़ जिले के अमड़ापाड़ा प्रखंड में 17 वर्षीय पहाड़िया नाबालिक युवक की मौत वज्रपात से हो गई. इसकी जानकारी पुलिस और सीओ को दी गई. यह घटना शुक्रवार की है. परिजनों को युवक का शव काफी खोजबीन करने के बाद पोखरा डेम के पास मिला. लेकिन गांव की बदकिस्मती तो देखिए झारखंड राज्य बने 20 साल हो गया लेकिन इस गांव तक पुलिस को पहुंचने के लिए खेतों में बने पगडंडियों का सहारा लेना पड़ा. प्रखंड के कोलखीपाड़ा सीतपहाड़ी के पहाड़िया टोला की है.
1 किलोमीटर पैदल चल मिलती है सड़क
शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज तो दिया गया लेकिन ये हुआ कैसे ये भी सुन लीजिए. पहले तो शव को ग्रामीणों ने खटिया पर उठाकर सड़क के किनारे तक पहुंचाया. जिसके बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया. लेकिन हैरानी ये है कि बासमती पंचायत के कोलखीपाड़ा सीतपहाड़ी पहाड़िया टोला जाने लिए कोई रास्ता नहीं है. पुलिस बल भी खेत के मेड़ पर पैदल एक किलोमीटर चलने के बाद गांव पहुंची. झारखंड अलग हुए कई साल बीत गए हैं, लेकिन आज तक इस गांव में जाने के लिए सड़क नहीं बनी है. ग्रामीणों का कहना है कि मुखिया और स्थानीय प्रशासन एक दो बार ही पहुंचते हैं. क्योंकि यहां सड़क ही नहीं बनी है. एक किलोमीटर पैदल चलना साहब हर किसी के बस की बात नहीं. खासकर खाकी वर्दी हो या खादी का लिबास. हर कोई इस गांव से वाकिफ तो है. मगर अंजान बना हुआ. सूबे में कितनी सरकारें आई और गई, लेकिन किसी को इस गांव की फिक्र नहीं सताई.
दावों के सहारे वोट, वोट दिया मगर नहीं मिला रोड
इस गांव में विकास की योजना कभी पहुंची ही नहीं. सड़क के रास्ते विकास पहुंचाने का दावा करने वाली सरकारें इस गांव तक आते आते फेल हो जाती हैं. या यूं कहें उनका कार्यकाल पूरा हो जाता है. तो मजबूरी है, समय नहीं मिला, इसलिए सड़क नहीं बना. नेता गांव पहुंचते हैं, कहते हैं, इसबार वोट दे दो. वोट खेतों के रास्ते ईवीएम मशीन तक जैसी ही पहुंचेगी समझो, गांव की सड़क का सिग्नल पास हो गया. लेकिन होता क्या है, जब कोई मरीज गंभीर होता है तो इसी तरह खाट पर लाद कर ग्रामीण पहले एक किलोमीटर चलकर सड़क तक पहुंचते हैं, तब तक मरीज में जान रह गई तो समझों भगवान को चढ़ावा तो जरूर मिल जाएगा.
नई सरकार है तो उम्मीदें भी हैं…
मृतक युवक के पिता सोनिया देहरी काफी गरीब हैं. परिवार वालों का रो रोकर हाल बुरा है. घटना की सूचना मिलते ही पुलिस बल पहुंच कर शव को पोस्टमार्टम के लिए पाकुड़ भेज दिया. बेबसी के आंसू अब यहां सूख चुके हैं. यहां के लोग इसके आदि हो चुके हैं. लेकिन यकीन है, और उम्मीद ऐसी है कि इसबार नई सरकार आई है, उम्मीदें भी जगी हैं, शायद गरीबों का दुख समझने वाली सरकार इस गांव का भी दुख समझेंगे.
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