–firoz Iliyasi
30 सितंबर, 2020, दिन बुधवार, 28 साल पुराने बाबरी विध्वंस (Babri Masjid, 1992) केस में लखनऊ की सीबीआई की स्पेशल कोर्ट का फैसला। लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती समेत सभी 32 आरोपी बरी कर दिए जाते हैं। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि बाबरी विध्वंस (Babri Masjid, 1992) सुनियोजित नहीं था, अराजक तत्वों ने ढांचा गिराया था और आरोपी नेताओं ने इन लोगों को रोकने की कोशिश की थी। अब सवाल ये नहीं है कि कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया। बल्कि 28 साल बाद सवाल फिर वही है कि बाबरी विध्वंस (Babri Masjid, 1992) किसने किया? अगर इंसान ने नहीं किया तो क्या ये ‘एक्ट ऑफ गोड (Act of God)’ था ?
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अराजक तत्वों ने ढांचा (Babri Masjid, 1992) गिराया तो सवाल ये है कि ये अराजक तत्व कौन थे ? मीडिया में चली वीडियो क्लीपिंग के साथ फोटो से लेकर सैकड़ों गवाह कोर्ट में पेश किए गए फिर भी इन अराजक तत्वों को सीबीआई क्यों नहीं पहचान पाई ? अगर किसी अराजक तत्व को सीबीआई पहचानने में नाकाम रही तो ये किसकी नाकामी है ? सवाल ये भी कि इस फैसले से क्या मुसलमानों को इंसाफ मिल गया ? कोर्ट के इस फैसले पर मुसलमानों की क्या सोच है, उसे भी जानना बेहद जरूरी है।
बाबरी विध्वंस (Babri Masjid, 1992) को लेकर दो आपराधिक केस दर्ज किए गए थे। पहला FIR नंबर197 और दूसरा FIR नंबर 198। 197 वाले FIR में ‘लाखों कारसेवकों’ के खिलाफ केस दर्ज किया गया था तो FIR नंबर 198 में आडवाणी समेत आठ लोगों के नाम थे। मुसलमानों में इस फैसले को लेकर नाराजगी दिख रही है लेकिन फिर भी उन्होंने सब्र और आपसी मिल्लत की मिसाल पेश की है। लेकिन मुल्क के रेहनुमाओं को ये सोचने की जरूरत है कि इस फैसले से क्या मुसलमानों को इंसाफ मिल गया ? सवाल ये भी है कि क्या बाबरी विध्वंस ‘एक्ट ऑफ गोड (Act of God)’ था ?
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